कितना खुशनसीब हूँ जो इस मुल्क का मुसलमान हूँ ( देश भक्ति कविता)

वक़्त बेवक्त अपनी वफादारी का इम्तहान हूँ ,दोस्तों में यारो में यारी का इम्तहान हूँ ।

नमाज की रोजे  की अज़ान की पहचान हूँ, कितना खुशनसीब हूँ जो इस मुल्क का मुसलमान हूँ।।

मैंने अशफाक से वतन पर मरना सीखा ,मौलाना कलाम से वतन के लिए कुछ करना सीखा।
मेजर उस्मान की तरह हर हाल में वतन पर कुर्बान हूँ, कितना खुशनसीब हूँ जो इस मुल्क का मुसलमान हूँ ।।
होली हो,  ईद हो दिवाली हो सदा खुश रहता हूँ मैं,
वतन की खातिर अमन की खातिर अपनी दुआओं में रोता हूँ मैं,
हर हिदुस्तानी की तरह भारत माँ के चेहरे की मुस्कान हूँ,
कितना खुशनसीब हूँ जो इस मुल्क का मुसलमान हूँ ।।

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